श्री राम द्वारा शक्ति माँ की उपासना करने का कारण
हिन्दु धर्म में देवी माँ दुर्गा के मुख्य नवरात्र वर्ष में 2 बार आते है , और दोनो नवरात्र ही भगवान राम की वजह से मनाये जाते है , चैत्र नवरात्र प्रभु राम के जन्म के कारण और अश्विन नवरात्र प्रभु राम की दुर्गा उपासना और रावण वध के कारण मनाये जाते है ।
प्रभु राम जब लंका पधारे तब रावण के भाई विभिषण ने प्रभु राम से कहा - "हे राम ! प्रभु आप तो जानते ही हो , मेरा भाई रावण बलशाली , मायावी होने के साथ - साथ अनेको वरदानो से युक्त है , उसके पास प्रभु शिव का अजेय रथ है , और इसके साथ - साथ वह महादेव का परम भक्त भी है, महादेव और देवी पार्वती उसकी भक्ति के कारण उस पर सदा प्रसन्न रहते है , इतने वरदान मिले है उसे, कि प्रभु राम ! आप अपनी मर्यादा अनुसार, उन सभी का पालन अवश्य करेंगे प्रभु , ऐसे में रावण को पराजित करने का केवल एक ही मार्ग है, कि आप देवी माँ दुर्गा की आराधना कर, उनसे रावण को पराजित करने का वरदान माँगे , अगर महाशक्ति दुर्गा का वरदान प्राप्त हो जायेगा तो आप निश्चय ही विजयी होंगे ।
प्रभु राम द्वारा शक्ति माँ की आराधना प्रारंम्भ करना
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रभु राम ने देवी माँ दुर्गा की आराधना आरंम्भ की , यह नवरात्र का प्रथम दिन कहलाया , इस दिन प्रभु राम ने शैलपुत्री माँ की आराधना की जो देवी माँ पार्वती का ही रूप था , प्रभु राम ने इस पूजा के लिए 108 नीलकमल चढ़ाने का निश्चय किया और 108 दीपक जला कर देवी माँ की आराधना प्रारम्भ कर दी । प्रभु राम ने 9 दिन तक देवी दुर्गा के 9 रुपो की उपासना की और इस दौरान प्रभु राम ने उपवास भी किया था । प्रभु राम द्वारा प्रारम्भ नवरात्र की यहा परम्परा आज भी विद्मामान है ।
प्रभु राम ने नवरात्र के प्रथम दिन शैलपुत्री माता , द्वितीय दिन ब्रह्मचारिणी माँ , नवरात्र के तृतीय दिन चंद्रघंटा माँ , नवरात्र के चर्तुथ दिन कुष्माण्डा माता तथा पाँचवे दिन सकंद माता तथा छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की , प्रभु राम ने नवरात्र के सातवे दिन माँ कालरात्री और आठवें दिन महागौरी और नवें दिन सिद्धिदात्री माँ की उपासना की । प्रभु राम देवी दुर्गा के नौ रूपो की अराधना कर रहे थे ।
दुर्गा माँ द्वारा राम प्रभु की परीक्षा
जब राम प्रभु, देवी माँ को नीलकमल अर्पित कर रहे थे, तो देवी माँ दुर्गा ने परीक्षा लेने के लिए एक कमल गायब कर दिया, जिसके फलस्वरूप श्री राम प्रभु के कमलो की संख्या 107 रह गई । प्रभु अपने निश्चय और वचन को पूर्ण कैसे करते ? वह न तो पूजा से खडे हो सकते थे और न ही ईशारे से एक कमल और मँगवा सकते थे । प्रभु राम के समक्ष दुविधा खडी हो गई , अपना वचन और निश्चय पूर्ण कैसे करें ? अगर 108 नीलकमल नही चढाये तो पूजा अपूर्ण रह जायेगी , तभी प्रभु राम को समरण हुआ की मेरी माँ मुझे राजीव नयन कहती थी , सुदर्शन चक्र के लिए शिव की अराधना के वक्त प्रभु विष्णु ने अपने दोनो नयन कमल मानकर अर्पित कर दिये थे , जिससे उनका नाम कमलनयन हो गया था ।
अतः मै अपना एक नेत्र कमल की जगह चढ़ाकर अपनी साधना पूर्ण कर सकता हूँ , ऐसा विचार कर प्रभु राम ने दृढ निश्चय किया और पास ही पडे एक बाण को उठाकर अपने चक्षु के समक्ष लाये । जैसे हि प्रभु राम अपना नयन अर्पित करने वाले थे , उसी समय माँ दुर्गा प्रकट हुई और उन्होने प्रभु राम का हाथ पकड लिया ।
देवी दुर्गा का अजेय वरदान
देवी दुर्गा ने प्रभु राम का हाथ पकड लिया और कहा "हे ! रघुनंदन तुम धन्य हो , तुम मेरे द्वारा ली गई परीक्षा में सफल हुए । तुम्हारा दृढ निश्चय और निश्छल भक्ति से मै अती प्रसन्न हुई" , ऐसा कहकर दुर्गा माँ ने श्री राम प्रभु को अजेय होने का वरदान दिया ।
प्रभु राम की दुर्गा उपासना सफल हुई , और दुर्गा माँ के वरदान स्वरूप ही राम प्रभु ने रावण का वध किया और समस्त युद्ध की मर्यादा का पालन करते हुए विजय प्राप्त की । नवरात्र के पश्चात अगला दिन विजमदशमी कहलाया और सत्य , धर्म की पताका लहरायी ।