प्रजापती का यज्ञ आयोजन
प्राचीन समय की बात है कि प्रजाप्रती ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था , इस यज्ञ में उन्होने समस्त देवता , ऋषी , गधर्व , नाग और समस्त देवमण्डल और महान विभूतियो को आमत्रिंत किया , परन्तु उन्होने अपने दामाद भगवान शिव को यज्ञ में आमत्रित नही किया , वह भगवान शिव का तिरस्कार करते थे , उनकी पुत्री सती भगवान शिव की अर्द्धागिनी थी ।
जब सती ने देखा की उनके पिता ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया है , पर उन्होने भगवान शिव को नही बुलाया । पर फिर भी देवी सती ने अपने पिता प्रजापती के यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की , इस पर भगवान शिव ने देवी माँ से कहा - " हे देवी ! जहां बुलावा न हो , वहाँ जाना नही चाहिए , अगर फिर भी आपकी इच्छा है तो आप जा सकती है " । देवी सती को लगा की मेरे पिता भुल से हमे बुलाना भूल गये है , मुझे देखते ही उन्हे समरण हो जायेगा और वह मेरे स्वामी शिव को यज्ञ का बुलावा भेज देंगे । अपने पिता के घर जाने में मुझे तो बुलावें की आवश्यकता नही है , और मुझे देखकर उन्हे अपनी गलती का अहसास हो जायेगा और वह महादेव को बुलावा भेज देंगे ।
देवी सती का देह त्याग
प्रभु शिव के समझाने के बाद भी देवी सती अपनी सोच में अपने पिता प्रजापती के घर पधारी , परन्तु ये क्या ? देवी सती को देखकर कोई भी प्रसन्न नही हुआ । सिर्फ देवी सती की माँ ने उनका सत्कार किया परन्तु बाकी लोगो के मुँह से तंज भरी वाणी निकल रही थी । परन्तु जब दक्ष प्रजापती ने सती के सामने प्रभु महादेव का उपहास उडाया तो देवी को यह अपमान सहन नही हुआ और वह विशाल यज्ञ वेदी में समा गई और अपने प्राणो का उत्सर्ग कर दिया ।
दक्ष प्रजापती शिव निंदा का घोर पाप कर चुका था , और उससे भी भयंकर पाप था , देवी का देह त्याग करना ।
शिव द्वारा वीरभद्र को भेजना
जब प्रभु शिव के पास यह सुचना पहुँची की देवी सती यज्ञ वेदी में समां गई , प्रभु शिव के क्रोध की कोई सीमा न रही , उन्होने तत्काल शिव गणो को दक्ष प्रजापति के यज्ञ की तरफ भेजा और क्रोध में अपनी जटा उखाड फेंकी जिससे शिव के उग्र रूप वीरभद्र जी की उत्पति हुई ।
प्रभु शिव ने वीरभद्र को आज्ञा दी की प्रजापती का यज्ञ ध्वसं कर दो , वीरभद्र जी प्रभु शिव से आज्ञा पाकर प्रजापती के यज्ञ की तरफ गये । उन्होने पल भर में सम्पूर्ण यज्ञ को ध्वसं कर दिया , वीरभद्र जी का क्रोध देखकर समस्त देवता आयोजन स्थल से भाग निकले । शिव जी के उग्र अंश का सामना करने का साहस भी किसमे होता , समस्त देवता अपनी जान बचाकर भाग निकले ।
क्योकि समस्त देवता दोषी थे , सती के यज्ञ प्रवेश के लिए , उनके समक्ष शिव निंदा का घोर पाप हुआ था , इस लिए देवता भी इस पाप के भागी बन चुके थे , वीरभद्र जी ने वही किया जो उचित था और शिव आज्ञा अनुसार था , अंत में वीरभद्र जी ने प्रजापती का मस्तक धड से अलग कर दिया ।
शिव का मोहभंग करना
प्रभु शिव सती उमा के मोह के कारण क्षुब्ध हो गये थे तो एक मान्यतानुसार प्रभु विष्णु जी ने देवी सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया , सती के शरीर के ये भाग जहां - जहा गिरें वहां - वहां दुर्गा माता के धाम बन गये । इस तरह से प्रभु शिव के मोह को भंग कर , प्रभु विष्णु ने इस संसार की रक्षा की । इसके बाद योगी शिव ध्यानमगन हो गये ।
सती का पुनः जन्म शैलपुत्री के रूप में
देवी सती का पुनः जन्म शैलराज हिमवान की पुत्री के रूप में हुआ ,शैल की पुत्री होने के कारण वह शैलपुत्री कहलायी । शैलपुत्री माता का अन्य नाम पार्वती भी है , यह नवरात्री की प्रथम माता के रूप में पूजी जाती है तथा नवदुर्गा में दुर्गा माँ का प्रथम रूप है ।
कहानी का सार रूप यही है कि प्रभु शिव का ध्यानभंग होने के बाद प्रभु शिव देवी सती को शैलपुत्री के रूप में पाते है , और माँ शैलपुत्री से विवाह कर लेते है । माँ गिरिजा , माँ पार्वती शिव की शक्ति है ।