वैदिक कहानियां - हमारी धरोहर में आज हम बतायेगें भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा
जानिये क्यो लिया प्रभु विष्णु ने प्रथम अवतार ? क्या है भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा ?
जानिये इस कहानी के माध्यम से -
जब संसार को किसी प्रकार का खतरा होता है तब भगवान विष्णु अवतरित होते हैं।
प्रभु विष्णु का मत्स्य के रूप में प्रकट होना
ब्रम्हांड की आवधिक विघटन के प्रलय के ठीक पहले जब प्रजापति ब्रह्मा के मुँह से वेदों का ज्ञान निकल गया, तब असुर हयग्रीव ने उस ज्ञान को चुराकर निगल लिया। तब भगवान विष्णु अपने प्राथमिक अवतार मत्स्य के रूप में अवतीर्ण हुए और स्वयं को राजा सत्यव्रत मनु के सामने एक छोटी, लाचार मछली बना लिया।
प्रभु मत्स्य नारायण की लीला
सुबह सत्यव्रत सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे तभी एक मछली नें उनसे कहा कि आप मुझे अपने कमंडल में रख लो। दया और धर्म के अनुसार इस राजा ने मछली को अपने कमंडल में ले लिया और घर की ओर निकले, घर पहुँचते तक वह मत्स्य उस कमंडल के आकार का हो गया, राजा नें इसे एक पात्र पर रखा परंतु कुछ समय बाद वह मत्स्य उस पात्र के आकार की हो गई। अंत में राजा नें उसे समुद्र में डाला तो उसने पूरे समुद्र को ढँक लिया।
मत्स्य का प्रभु महाविष्णु के रूप में दर्शन देना
उस सुनहरी-रंग मछली ने अपने दिव्य पहचान उजागर की और अपने भक्त को यह सूचित किया कि उस दिवस के ठीक सातवें दिन प्रलय आएगा तत्पश्चात् विश्व का नया सृजन होगा वे सत्यव्रत को सभी जड़ी-भूति, बीज और पशुओं, सप्त ऋषि आदि को इकट्ठा करके प्रभु द्वारा भेजे गए नाव में संचित करने को कहा।
असुर हयग्रीव का अंत और संसार की प्रलय से रक्षा
इसके पश्चात् अति-विशाल मत्स्य अवतार ने असुर हयग्रीव को मारकर वेदो को गुमनाम होने से बचाया और उसे ब्रह्मा जी को दे दिया। जब ब्रह्मा जी अपनी नींद से उठे जो परलय के अन्त में था, इसे ब्रह्मा की रात पुकारा जाता हैं, जो गणना के आधार पर 4320000000 सालो तक चलता है। जब ज्वार ब्रम्हांड को भस्म करने लगा तब एक विशाल नाव आया, जिस पर सभी चढ़ गये । मत्स्य भगवान ने उसे सर्पराज वासुकि को डोर बनाकर बाँध लिया और सुमेरु पर्वत की ओर प्रस्थान किया।
रास्ते में भगवान मत्स्य नारायण ने मनु (सत्यव्रत) को मत्स्य पुराण सुनाया और इस तरह प्रभु ने सबकी प्रलय से रक्षा की, तथा पौधों तथा जीवों की नस्लों को बचाया और मत्स्य पुराण की विद्या को नवयुग में प्रसारित किया।