वैदिक कहानियां - हमारी धरोहर में आज हम बतायेगें भगवान राम और शबरी की कहानी -
जानिये क्यो प्रभु श्री राम ने खाये शबरी के झूठे बेर ? क्या है भगवान राम और शबरी की कथा ?
जानिये इस कहानी के माध्यम से -
शबरी की प्रतीक्षा
प्रातःकाल का समय था, रामभक्ति में डूबी शबरी प्रतिदिन की भांति रास्ते में फूल बिछा रही थी। शबरी का विश्वास था कि एक दिन प्रभु श्रीराम इसी रास्ते से उसकी कुटिया में आएंगे। उस अनभिज्ञ को क्या पता था कि अब उसकी प्रतीक्षा समाप्त होने को आयी है। वह अपनी बूढ़ी हो चुकी आँखों से भी चुन-चुनकर फूल बिछा रही थी और रास्ते से कंकड़-पत्थर हटा ही रही थी कि सामने से दो वनवासी आकर खड़े हो गए।
प्रभु श्री राम का आगमन
बूढ़ी हो चुकी शबरी उन वनवासियों को पहचान भी नही पायी कि सामने आखिर खड़ा कौन है ? खिन्न होकर बोली “यहाँ से हट जाओ, मेरे राम यही से आएंगे। तुम रोज-रोज आकर मेरे पुष्पों पर पैर मत रखा करो, बहुत मुश्किल से चुने हैं, मैंने यह कोमल पुष्प ताकि मेरे प्रभु श्रीराम को कोई कष्ट ना हो।”
प्रभु राम की करुणा
दोनों वनवासी उस भोली बुढियां की बात सुन ही रहे थे कि तभी एक वनवासी प्रसन्न होकर बोला, “माई, तुम्हारी प्रतीक्षा समाप्त हो गयी, तुम्हारा राम आ गया है । मैं ही दशरथ नंदन राम हूँ और ये मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है । कैसी हो आप माई? आप ठीक तो हो ना? सब कुशल - मंगल है ? हमे अपनी कुटिया में नही ले चलोगी।”
शबरी की पवित्र भावना
यह सुनना ही था कि शबरी सबकुछ भूल गयी। बेचारी इतने वर्षों से जिनकी प्रतीक्षा कर रही थी, फूल बिछा रही थी, कंकड़-पत्थर चुन-चुनकर हटा रही थी, आज वे स्वयं आए तो उन्हें ही नही पहचान पायी। प्रभु को सामने देखकर भी ना पहचान पाने से बेचारी को इतनी आत्म-ग्लानि अनुभव हुई कि प्रभु चरणों में गिर पड़ी और रोने लगी,आंसुओं से नारायण के पैर शबरी ने धो डाले, शबरी लगातार रोये जा रही थी और आंसू टप-टप करके प्रभु चरणों में गिर रहे थे। प्रभु श्रीराम शबरी की पवित्र भावना समझ गये और कहा - "आपकी भक्ती धन्य है माई" ।
शबरी के बेर
प्रभु राम बोले माई हम बहुत थक गए हैं, अपनी कुटिया में लेकर नही चलोगी। यह सुन शबरी एकदम से खड़ी हो गयी और श्री राम -लक्षमण को आदर सहित कुटिया के अंदर ले गई और दोनो को बैठने के लिए आसन्न दिये फिर पूछा, प्रभु बहुत दूर से आए हो, अवश्य ही भूख लगी होगी। इतना कहकर लंगडाती हुई अपनी कुटिया के भीतर गयी और अपने झूठे बेर प्रभु के समक्ष खाने हेतु प्रस्तुत किये । शबरी प्रतिदिन प्रभु के लिए बाग से ताजा बेर तोड़कर लाती और चखकर जो बेर खट्टे होते उन्हे फेंक देती और जो बेर मीठे होते उन्हें टोकरी में रख लेती।
प्रभु राम की कृपा
शबरी ने बड़े ही भक्तिभाव व भोलेपन से प्रभु के सामने झूठे बेर लाकर रख दिए। कोई और सोच भी नही सकता था कि भगवान को झूठा भोग लगाया जाए। लक्ष्मण ने जब यह देखा तो प्रभु का अपमान महसूस किया लेकिन यह क्या...! श्रीराम तो खुशी से एक-एक बेर उठाकर खाने लगे जैसे कि बहुत भूखे हो।
शबरी की भक्ती
प्रभु बेर खा रहे थे, शबरी उन्हें देखे जा रही थी और बेचारे लक्ष्मण अचंभित थे। बीच में शबरी ने पूछ ही लिया, प्रभु बेर मीठे तो हैं ना, मैंने एक-एक चखकर देखे हैं ताकि आपको खट्टे ना लगे श्रीराम ने भी तपाक से बोल दिया कि माईं, इतने मीठे बेर तो वैकुंठ में भी ना मिले। बस शबरी को और क्या चाहिए था, बरसो का परिश्रम रंग जो लाया था। शबरी की भक्ती सफल हो गई थी ।
लक्ष्मण जी का असमंजस
लक्ष्मण जी अभी भी अचंभित ही थे, सोच रहे थे कि जिनको भक्त अपने खाने से पहले उन्हें भोग लगाते हैं व फिर प्रसाद रूप में खाते हैं, आज वही एक नादान महिला के झूठे बेर क्यों खा रहे हैं ? लेकिन वे क्या जानते थे कि प्रभु ने शबरी के झूठे बेर खाकर क्या संदेश दे दिया। प्रभु के लिए सच्चा-झूठा भक्त की दी वस्तु से नही बल्कि उसके मन से महत्व रखती हैं। दूसरो का छीना हुआ, कपट से कमाया या अधर्म के पैसो का छप्पन भोग भी भगवान को लगा दो तो वह शबरी के झूठे बेर के आगे फीके ही रहेंगे।
प्रभु राम का आदर्श
सच में प्रभु राम का आदर्श बहुत महान है और ये हमारी मानव जाती का सौभाग्य है कि प्रभु राम ने मानव रूप ग्रहण कर मानवता की ऐसी अद्धितिय परिभाषा दी ।