माता शैलपुत्री को नारद जी की आज्ञा
जब माँ पार्वती शैलराज हिमवान के घर जन्मी तो शैल की पुत्री होने के कारण वह शैलपुत्री कहलाई , माता शैलपुत्री भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए नारद ऋषी के पास गई , तब नारद ऋषी ने कहा - हे देवी ! यदि आप प्रभु शिव को पति रूप में पाना चाहती हो तो देवी आपको भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करनी होगी " । ऐसा कहकर देव ऋषी नारद अंर्तध्यान हो गये । माँ शैलपुत्री प्रभु शिव को पाने के लिए तपस्या आरंम्भ कर देती है ।
शैलपुत्री से ब्रह्मचारिणी बनने की कहानी
यहाँ ब्रह्मचारिणी में ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है, अत: देवी माँ का यह रूप तपस्विनी का है, देवी माँ ने इस रूप में अत्यंत कठोर तपस्या की थी अतः दुर्गा माँ का यह रूप ब्रह्मचारिणी कहलाया ।
ब्रह्मचारिणी माँ की तपस्या
माँ ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण कर प्रभु शिव की जैसे ही तपस्या आरम्भ की प्रारम्भ में माँ ने कुछ वर्षो तक फलो का आहार लिया , तत्पश्चात माँ नें अन्न जल का त्याग कर कठिन तपस्या प्रारम्भ कर दी , प्रभु शिव को वर रूप में पाने के लिए माँ ब्रह्मचारिणी ने एक हि मुद्रा में ५००० वर्ष तक प्रभु शिव की साधना की ।
प्रभु शिव की परीक्षा
जब माँ को तपस्या करते - करते अत्यंत समय बीत गया और माँ ने न अन्न का एक भी दाना खाया और न ही जल की एक बूंद ग्रहण की , मां कि इस अवस्था के पश्चात भी प्रभु शिव ने माँ ब्रह्मचारिणी की परीक्षा ली और परीक्षा लेने के लिए प्रभु शिव ने वाराह का एक रूप बनाया और देवी माँ के समक्ष कुछ दूरी पर जाकर कीचड़ में फस गये ।
वह वाराह दर्द के मारे जोर - जोर से देवी माँ को सहायता के लिए पुकारने लगा । ममतामयी माँ छोटे जीव की दर्द भरी पुकार सह न पाई और अपनी साधना को बीच में ही छोड कर जीव की मदद के लिए अपने नेत्र खोले " तभी वहाँ भगवान शिव प्रकट हुये और बोले देवी यदी आप यह आसन्न छोडकर यहाँ से जाओगी तो आपकी ५००० वर्ष की साधना का लाभ आपको न मिलेगा , क्या आप इस जीव के लिए अपने ५००० वर्ष की दुर्जन साधना को त्याग दोगी " इस पर देवी माँ ने शिव को प्रणाम कर कहा " हे प्रभु ! समस्त जीवो में तो शिव का ही निवास है , यदी यह जीव मुझे मदद के लिए पुकारेगा और मै समर्थ होकर भी अगर इसकी मदद न करू तो मुझसे बडा असहाय और कौन होगा , ५००० वर्ष तो क्या जीव दया के लिए सहस्त्र वर्ष की तपस्या भी त्यागनी पडे तो कोई आश्चर्य की बात नही है । मेरे लिए स्व से ज्यादा पर जीव की पीडा का महत्व है , सभी जीव मेरी संतान है एक माँ भला किसी को कष्ट में कैसे देख सकती है ।"
प्रभु शिव का वरदान
देवी माँ का यह उत्तर पाकर प्रभु शिव बोले " धन्य हो देवी ! आपकी तपस्या सफल हुई , इतना कहकर प्रभु शिव ने अपनी सारी माया समेट ली और वह वाराह जो शिव का ही रूप था , शिव में जा मिला । "
हे देवी ! आपकी करूणा देखकर मै नतमस्तक हो गया , आप मेरी परीक्षा में उतीर्ण हुई हे देवी माँगो क्या वर दुँ ?
देवी माँ ने कहा - वर में मुझे शिव वर दो अर्थात् प्रभु शिव को विवाह के लिए वर रूप में माँगना ।