बुधवार व्रत कथा

Abhishek Jain
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बुधवार के व्रत की विधि 

बुध ग्रह की शान्ति तथा सर्व-सुखों की इच्छा रखनेवाले स्त्री-पुरुषों को बुधवार का व्रत करना चाहिए तथा श्वेत पुष्प, श्वेत वस्त्र तथा श्वेत चन्दन से बुध भगवान की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए ( भोजन जैसी वस्तुएँ ही दान में दें)।इस व्रत के समय हरी वस्तुओं का उपयोग करना श्रेष्ठ है।व्रत के अन्त में शंकरजी की पूजा, धूप, दीप, बेल-पत्र आदि से करनी चाहिए। साथ ही बुधवार की कथा सुनकर आरती के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिए। बीच में नहीं उठना चाहिए।इस व्रत का प्रारंभ शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से करें और 21 व्रत रख कर व्रत का उद्द्यापन करें .

बुधवार व्रत कथा

एक व्यक्ति अपनी पत्नी को विदा करवाने अपनी ससुराल गया। कुछ दिवस रहने के पश्चात् उसने सास-ससुर से अपनी पत्नी को विदा करने के लिए कहा। किन्तु सास-ससुर तथा अन्य सम्बन्धियों ने कहा कि आज बुधवार का दिन है आज के दिन गमन नहीं करते। वह व्यक्ति नहीं माना और हठधर्मी करके बुधवार के दिन ही पत्नी को विदा करवाकर अपने नगर को चल पड़ा। राह में उसकी पत्नी को प्यास लगी तो उसने अपने पति से कहा कि मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है। वह व्यक्ति लोटा लेकर गाड़ी से उतरकर जल लेने चला गया। जब वह जल लेकर लौटा और अपनी पत्नी के निकट आया तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि ठीक उसकी जैसी सूरत तथा वैसी ही वेशभूषा वाला एक व्यक्ति उसकी पत्नी के निकट गाड़ी में बैठा हुआ है।


बुधवार व्रत कथा


उसने क्रोध में दूसरे व्यक्ति से पूछा-तू कौन है, जो मेरी पत्नी के निकट बैठा है? दूसरा व्यक्ति बोला-'यह मेरी पत्नी है। मैं अभी-अभी इसे ससुराल से विदा करवाकर ला रहा हूँ। वे दोनों परस्पर झगड़ने लगे। तभी राज्य के सिपाही आए और उन्होंने लोटे वाले व्यक्ति को पकड़ लिया तथा स्त्री से पूछा-'तुम्हारा असली पति कौन-सा है?' उसकी पत्नी शान्त ही रही क्योंकि दोनों एक जैसे थे वह किसे अपना पति कहे। वह व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ बोला-हे परमेश्वर! यह क्या लीला है कि सच्चा झूठा बन रहा है। तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख आज बुधवार के दिन तुझे गमन नहीं करना था। तूने किसी की बात नहीं मानी। यह सब लीला बुधदेव भगवान् की है। उस व्यक्ति ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की और अपनी गलती के लिए क्षमा की याचना की। तब मनुष्य के रूप में आए भगवान बुधदेव अन्तर्ध्यान हो गए। वह व्यक्ति अपनी स्त्री को लेकर घर आया। इसके बाद पति-पत्नी बुधवार का व्रत नियमपूर्वक करने लगे। जो व्यक्ति इस कथा को श्रवण करता है तथा दूसरों को सुनाता है उसको बुधवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता है और सर्वप्रकार से सुखों की प्राप्ति होती है।

भगवान बुध की आरती

आरती युगलकिशोर की कीजै।
 तन मन न्यौछावर कीजै ॥टेक॥
गौरश्याम मुख निरखत लीजै। 
हरि का स्वरूप नयन भरि पीजै॥
रवि शशि कोटि बदन की शोभा। 
ताहि निरखि मेरे मन लोभा॥
ओढे नील पीत पट सारी। 
कुंजबिहारी गिरिवरधारी॥
फलन की सेज फूलन की माला।
रत्न सिंहासन बैठे नन्दलाला ॥
मोरमुकुट कर मुरली सोहै। 
नटवर कला देखि मन मोहै॥
कंचनथार कपूर की बाती। 
 हरि आए निर्मल भई छाती ॥
श्री पुरुषोत्तम गिरिवर धारी। 
आरती करें सकल ब्रज नारी ॥
नन्दनन्दन बृजभानु किशोरी। 
परमानन्द स्वामी अविचल जोरी॥

" जय बुधदेव जी "


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