बुधवार के व्रत की विधि
बुधवार व्रत कथा
एक व्यक्ति अपनी पत्नी को विदा करवाने अपनी ससुराल गया। कुछ दिवस रहने के पश्चात् उसने सास-ससुर से अपनी पत्नी को विदा करने के लिए कहा। किन्तु सास-ससुर तथा अन्य सम्बन्धियों ने कहा कि आज बुधवार का दिन है आज के दिन गमन नहीं करते। वह व्यक्ति नहीं माना और हठधर्मी करके बुधवार के दिन ही पत्नी को विदा करवाकर अपने नगर को चल पड़ा। राह में उसकी पत्नी को प्यास लगी तो उसने अपने पति से कहा कि मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है। वह व्यक्ति लोटा लेकर गाड़ी से उतरकर जल लेने चला गया। जब वह जल लेकर लौटा और अपनी पत्नी के निकट आया तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि ठीक उसकी जैसी सूरत तथा वैसी ही वेशभूषा वाला एक व्यक्ति उसकी पत्नी के निकट गाड़ी में बैठा हुआ है।
उसने क्रोध में दूसरे व्यक्ति से पूछा-तू कौन है, जो मेरी पत्नी के निकट बैठा है? दूसरा व्यक्ति बोला-'यह मेरी पत्नी है। मैं अभी-अभी इसे ससुराल से विदा करवाकर ला रहा हूँ। वे दोनों परस्पर झगड़ने लगे। तभी राज्य के सिपाही आए और उन्होंने लोटे वाले व्यक्ति को पकड़ लिया तथा स्त्री से पूछा-'तुम्हारा असली पति कौन-सा है?' उसकी पत्नी शान्त ही रही क्योंकि दोनों एक जैसे थे वह किसे अपना पति कहे। वह व्यक्ति ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ बोला-हे परमेश्वर! यह क्या लीला है कि सच्चा झूठा बन रहा है। तभी आकाशवाणी हुई कि मूर्ख आज बुधवार के दिन तुझे गमन नहीं करना था। तूने किसी की बात नहीं मानी। यह सब लीला बुधदेव भगवान् की है। उस व्यक्ति ने भगवान बुधदेव से प्रार्थना की और अपनी गलती के लिए क्षमा की याचना की। तब मनुष्य के रूप में आए भगवान बुधदेव अन्तर्ध्यान हो गए। वह व्यक्ति अपनी स्त्री को लेकर घर आया। इसके बाद पति-पत्नी बुधवार का व्रत नियमपूर्वक करने लगे। जो व्यक्ति इस कथा को श्रवण करता है तथा दूसरों को सुनाता है उसको बुधवार के दिन यात्रा करने का कोई दोष नहीं लगता है और सर्वप्रकार से सुखों की प्राप्ति होती है।