मंगलवार के व्रत की कथा

Abhishek Jain
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मंगलवार के व्रत की विधि:

यह व्रत कम से कम लगातार 21 मंगलवार तक किया जाना चाहिए. व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर लें. उसके बाद घर के ईशान कोण में किसी एकांत में बैठकर हनुमानजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. इस दिन लाल कपड़े पहनें और हाथ में पानी ले कर व्रत का संकल्प करें. हनुमान जी की मूर्ति या तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं और भगवान पर फूल माला या फूल चढ़ाएं. 

फिर रुई में चमेली के तेल लेकर बजरंगबली के सामने रख दें या मूर्ति पर तेल के हलके छीटे दे दें. इसके बाद मंगलवार व्रत कथा पढ़ें. साथ ही हनुमान चालीसा और सुंदर कांड का पाठ करें. फिर आरती करके सभी को व्रत का प्रसाद बांटकर, खुद भी लें. दिन में सिर्फ एक पहर का भोजन लें. अपने आचार-विचार शुद्ध रखें. शाम को हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर आरती करें.

मंगलवार के व्रत का उद्यापन:

21 मंगलवार के व्रत होने के बाद 22वें मंगलवार को विधि-विधान से हनुमान जी का पूजन करके उन्हें चोला चढ़ाएं. फिर 21 ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोजन कराएं और क्षमतानुसार दान–दक्षिणा दें.

मंगलवार व्रत कथा

एक निःसन्तान ब्राह्मण दम्पत्ति काफ़ी दुःखी थे। ब्राह्मण वन में पूजा करने गया और हनुमान जी से पुत्र की कामना करने लगा। घर पर उसकी स्त्री भी पुत्र की प्राप्त के लिये मंगलवार का व्रत करती थी।मंगलवार के दिन व्रत के अंत में हनुमान जी को भोग लगाकर भोजन करती थी। एक बार व्रत के दिन ब्राह्मणी ना भोजन बना पायी और ना भोग ही लगा सकी। तब उसने प्रण किया कि अगले मंगल को ही भोग लगाकर अन्न ग्रहण करेगी। भूखे प्यासे छः दिन के बद मंगलवार के दिन तक वह बेहिओश हो गयी। हनुमान जी उसकी निष्ठा और लगन को देखकर प्रसन्न हो गये। उसे दर्शन देकर कहा कि वे उससे प्रसन्न हैं और उसे बालक देंगे, जो कि उसकी सेवा किया करेगा।


इसके बाद हनुमान जी उसे बालक देकर अंतर्धान हो गये। ब्राह्मणी इससे अति प्रसन्न हो गयी और उस बालक का नाम मंगल रखा। कुछ समय उपरांत जब ब्राह्मण घर आया, तो बालक को देख पूछा कि वह कौन है। पत्नी ने सारी कथा बतायी। पत्नी की बातों को छल पूर्ण जान ब्राह्मण ने सोचा कि उसकी पत्नी व्यभिचारिणी है। एक दिन मौका देख ब्राह्मण ने बालक को कुंए में गिरा दिया और घर पर पत्नी के पूछने पर ब्राह्मण घबराया। पीछे से मंगल मुस्कुरा कर आ गया। ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया। रात को हनुमानजी ने उसे सपने में सब कथा बतायी, तो ब्राह्मण अति हर्षित हुआ। फ़िर वह दम्पति मंगल का व्रत रखकर आनंद का जीवन व्यतीत करने लगे।

मंगलवार व्रत की आरती

आरती कीजै हनुमान लला की। 
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरवर काँपे। 
रोग दोष जाके निकट न झाँके॥

अंजनीपुत्र महा बलदाई।
 संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीड़ा रघुनाथ पठाए। 
लंका जारि सिया सुधि लाए॥

लंक सो कोट समुद्र सी खाई। 
जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। 
सियारामजी के काज सँवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। 
लाय संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम कारे। 
अहिरावण की भुजा उखारे॥

बाएँ भुजा असुर संहारे। 
दाहिने भुजा संत जन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। 
जै जै जै हनुमान उचारें॥

कंचन थार कपूर लौ छाई। 
आरति करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावै। 
बसि बैकुंठ परमपद पावै

आरती कीजै हनुमान लला की। 
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

" जय श्री राम - जय हनुमान "

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