वैदिक कहानियां - हमारी धरोहर में आज हम बतायेगे विश्वामित्र तथा गुरु वशिष्ठ मे युद्ध की वैदिक कहानी
क्षत्रिय राजा के रूप में विश्वामित्र जी
महर्षि बनने से पूर्व विश्वामित्र राजा हुआ करते थे, जिनका नाम था राजा कौशिक। राजा कौशिक बड़े ही पराक्रमी और प्रजावत्सल राजा थे, जो अपनी प्रजा का संरक्षण और प्रजा की खुशहाली के लिए हर संभव कार्य करते थे।
एक दिन कौशिक पृथ्वी भ्रमण करने के लिए अपनी सेना के साथ निकले और एक जंगल में पहुंचे। जहां पर महर्षि वशिष्ठ का आश्रम था। महर्षि वशिष्ठ यज्ञ कार्य में व्यस्त थे तो राजा कौशिक प्रणाम करके वहाँ बैठ गए। यज्ञ संपन्न करने के बाद महर्षि ने राजा कौशिक का आदर सत्कार किया तथा कुछ दिनों तक रहकर उनका आतिथ्य स्वीकार करने के लिए आग्रह किया।
वशिष्ठ मुनी द्वारा आदर सत्कार करना
पहले तो अपनी विशाल सेना देखकर राजा कौशिक संकोच करने लगे लेकिन महर्षि वशिष्ठ के बार-बार आग्रह करने पर राजा कौशिक कुछ दिनों के लिए वहां पर ठहर गए। जब महर्षि विशिष्ठ ने सभी का आदर सत्कार बड़ी अच्छे तरीके से किया तो राजा कौशिक बड़े प्रभावित हुये और बोले – "हे महर्षि! आपने हमारी इतनी बड़ी सेना का आदर सत्कार किया उन्हें भोजन कराया उसके लिए मैं आपका आभारी हुँ।"
लेकिन मैं यह जानना चाहता हूं, कि आपने इतनी बड़ी सेना का आदर सत्कार कैसे किया? उन्हें कैसे खाना खिलाया? महर्षि वशिष्ठ बोले – हे राजन! मेरे पास कामधेनु गाय की पुत्री नंदनी है, जो स्वयं मुझे भगवान इंद्रदेव ने दी थी। उसी कामधेनु नंदनी द्वारा आप सभी का आहार प्राप्त हुआ है।
राजा कौशिक का लालच
यह बात सुनकर महाराज कौशिक के मन में उस गाय को प्राप्त करने की लालसा जागृत हो गई और उन्होंने महर्षि से कहा – हे महर्षि! आप इस गाय का क्या करेंगे? इस गाय को तो राजा, महाराजाओं के पास होना चाहिए। कृपया करके आप मुझे इस गाय को दे दीजिये, हम आपको स्वर्ण मुद्राओं से तौल देंगे।
मुनि वशिष्ठ द्वारा प्रस्ताव का अस्वीकरण
लेकिन महर्षि वशिष्ठ ने साफ मना कर दिया, उन्होंने कहा कि यह मेरी गाय है तथा यह मुझे मेरे प्राणों से भी प्रिय है तथा अनमोल है। मैं इसे अपने से अलग नहीं कर सकता। इतना सुनते ही राजा कौशिक को अपना अपमान महसूस हुआ और उन्होंने अपनी सेना को आज्ञा दी कि इस गाय को ज़बरदस्ती हाँक ले चलो।
गाय की पुकार
उसकी सेना के सैनिक गाय को मारने पीटने लगे तो गाय रोने लगी और महर्षि से से बोली – हे महर्षि! मेरी रक्षा कीजिए। महर्षि बोले में स्वयं ही विवश हुँ एक तो यह राजा मेरे आतिथ्य में हैं और दूसरा हम इसके राज्य में रहते है, इसलिए मैं इस पर हाथ नहीं उठा सकता हुँ।
नंदिनी गाय के द्वारा राजा को परास्त करना
इसके पश्चात गाय ने कहा ठीक है, मैं स्वयं ही अपनी रक्षा करती हुँ और गाय ने राजा कौशिक से भी बड़ी सेना प्रकट कर दी देखते ही देखते राजा कौशिक की सेना को परास्त कर दिया और राजा को बंदी बनाकर महर्षि के सामने पेश कर दिया।
वशिष्ठ मुनी का अपमान
बंदी बनने के उपरांत भी राजा कौशिक ने महर्षि पर आक्रमण कर दिया यह सब देख महर्षि बड़े ही रुष्ट हुये और उन्होंने राजा के एक पुत्र को छोड़कर सभी पुत्रों को श्राप दे दिया और सभी पुत्र वहीं जलकर भस्म हो गए।
राजा कौशिक का पश्चाताप
राजा कौशिक पश्चाताप की अग्नि में जलने लगे और अपना राजपाट अपने पुत्र को सौंपकर गहन तपस्या में लीन हो गए। उन्होंने कठोर तपस्या करके सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र प्राप्त करने के पश्चात महर्षि पर फिर से आक्रमण कर दिया। इस बार भी महर्षि ने राजा कौशिक के सभी अस्त्र-शस्त्र काट दिए दोंनो महर्षियों ने इस युद्ध में अपने पुत्रों को खो दिया और महर्षि विश्वामित्र को आभास हो गया की क्षत्रियत्व से ब्राह्मणत्व श्रेष्ठ है और फिर तपस्या में लीन हो गए।
इसके पश्चात यह राजा कौशिक गायत्री मंत्र की दुर्जन और कठिन तपस्या कर महर्षी विश्वामित्र के रूप में विख्यात हुये ।